धर्म और संप्रदाय में ज्यादा फर्क नहीं होता। दोनों ही मानव जीवन के लिए बनाए गए हैं। दोनों में नियम होते हैं। धर्म और संप्रदाय में कुछ फर्क है जैसे कि धर्म समस्त मानव जाति के लिए एक समान होता है। धर्म कभी भी भेदभाव, छुआछूत नहीं करता। धर्म मनुष्य को सदैव सही राह दिखाता है। धर्म मानव को जीवन चलाने का तरीका सिखाता है। धर्म कभी मानव को भ्रमित नहीं करता है, जबकि संप्रदाय धर्म की तरह ही दिखता है। संप्रदाय समस्त मानव जाति के लिए नहीं होता। जो लोग इस संप्रदाय को मानते हैं, वही लोग संप्रदाय के नियमों को भी मानते हैं। एक संप्रदाय के नियम उन्हीं लोगों तक सीमित रहते हैं जो उन्हें मानते हैं। संप्रदाय में धर्म के कुछ नियम जरूर होते हैं लेकिन संप्रदाय धर्म नहीं होता।आप सोच रहे होंगे कि संप्रदाय धर्म नहीं है तो संप्रदाय बने कैसे ,इनका विकास कैसे हुआ। इनका विस्तार कैसे हुआ ।संप्रदाय बनने के दो कारण हैं। पहला कारण यह है कि समय के साथ परिस्थितियां बदलती है। जब मनुष्य की परिस्थितियां बदली तो मनुष्य को धर्म के नियमों की पालना करना कठिन होने लगा, मुश्किलें होने लगी तब किसी धर्मगुरु ने या किसी विद्वान ने उस धर्म के नियमों का सरलीकरण किया।
