मनुष्य प्रकृति की संतान है

 


जन्म और मृत्यु दोनों ही समय में जीवन प्रकृति के प्रकाश से होकर गुजरता है। प्रकृति ही जीवन देती है और प्रकृति ही जीवन का अंत करती है। प्रकृति सर्वशक्तिमान है। प्रगति ही सृजन करती है और प्रकृति ही समय आने पर संहार करती है। यह एकमात्र सर्वशक्तिमान शक्ति है जो संपूर्ण ब्रह्मांड को चलाती है, ब्रह्मांड का निर्माण करती है और ब्रह्मांड का निरंतर विस्तार करती है। आदि प्रकृति आदि प्रकृति वह शक्ति है जिसने ब्रह्मांड का निर्माण किया, सूर्य और पृथ्वी को बनाया, पृथ्वी पर जीवन की नींव रखी। यही जीवन देती है, यही जीवन को बनाए रखती है, यही जीवन का अंत करती है। कौन सा जीव कब जन्म लेगा, यह प्रकृति ही तय करती है। यह शक्ति सभी जीवों के जन्म से पहले ही उनके भोजन और जीवित रहने की व्यवस्था कर देती है। प्रत्येक जीव के पृथ्वी पर जन्म लेने से पहले ही प्रगति उसके जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करती है और फिर उसे जीवन देती है। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि जीवन शुरू होने से पहले ही प्रगति प्रत्येक जीव के लिए खाने-पीने की व्यवस्था कर देती है और उसके बाद उसे जीवन प्रदान करती है। पृथ्वी पर कई प्रकार की भौगोलिक परिस्थितियाँ हैं।  इन भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार प्रकृति हर जीव को कोई न कोई विशेषता प्रदान करती है, चाहे वह पशु हो, पक्षी हो या पेड़-पौधे हों। कोई न कोई विशेषता होती ही है। इस धरती पर ऐसा कोई जीव नहीं है जिसमें कोई न कोई विशेषता न हो। प्रकृति ने सभी जीवों को कोई न कोई गुण अवश्य दिया है क्योंकि प्रकृति की दृष्टि में सभी समान हैं, चाहे वह मनुष्य हो या जानवर, चाहे वह पेड़-पौधे हों या कीड़े-मकौड़े हों, सभी में विशेषता होती है। सभी जीव प्रकृति की संतान हैं, प्रकृति सभी जीवों की मां है और मां कभी भेदभाव नहीं करती। प्रकृति ने ही ब्रह्मांड का निर्माण किया है, धरती पर जन्म लेने वाला हर मनुष्य प्रकृति की संतान है। कोई भी मनुष्य प्रकृति के बिना जीवित नहीं रह सकता क्योंकि हमारा शरीर प्रकृति से बना है, हमारे शरीर के भीतर जो जीवन है वह हमें प्रकृति ने ही दिया है, इस जीवन के भीतर जो प्राण है वह प्रकृति की देन है, इस प्राण के भीतर जो परम ऊर्जा मूल प्रकृति का हिस्सा है वह भी मूल प्रकृति की देन है।

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