धर्म क्या है भाग 4?

 


हमारी पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति करोड़ों वर्ष पहले हुई । मानव का इतिहास भी बहुत पुराना है अगर हमारा इतिहास कितना पुराना है तो जिस धर्म को आज हम मानते हैं उस धर्म का इतिहास भी उतना ही पुराना होना चाहिए जितना मानव का इतिहास,लेकिन ऐसा नहीं है। आज धरती पर जितने भी धर्म है, उन धर्मों का इतिहास उतना प्राचीन नहीं है, जितना मानव का इतिहास। किसका कारण आज जिन्हें हम धर्म कहते हैं, वह सही मायने में धर्म है ही नहीं संप्रदाय है। धर्म और संप्रदाय दोनों में अंतर है। धर्म संपूर्ण मानव जाति के लिए एक ही है। चाहे मनुष्य धरती के किसी भी कोने में रहे। आज हम सभी मनुष्य धरती के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं। लेकिन यह सत्य है कि सभी मानवो की उत्पत्ति एक ही जगह से हुई है। बाद में आबादी बढ़ने पर खाने और सुरक्षा के लिए मानव एक जगह से दूसरी जगहों पर जाकर रहने लगे।इस प्रकार धरती पर मानव का फैलाव होने लगा। धरती की जिस जगह पर मनुष्य का प्रादुर्भाव हुआ जहां मनुष्य का विकास हुआ, जहां मनुष्य ने अपनी बुद्धि और विवेक का विस्तार किया। वहीं पर मनुष्य ने अपने धर्म की नींव रखी। उसी स्थान पर समय के साथ मानव धर्म का विकास होता रहा। धर्म के विकास से मनुष्य की आबादी बढ़ने लगी। इसके कई कारण थे जिन पर हम आगे चर्चा करेंगे । जब मानव धर्म अपनी चरम सीमा पर था तब मानव उसे अपने साथ लेकर धरती के अलग-अलग हिस्सों में रहने चले गए। समय के साथ आबादी बढ़ गई। मानव का विस्तार और विकास दोनों एक साथ होते रहे। मानव जहां भी गया धर्म को अपने साथ ले गया।

समय के साथ मानव धर्म में कुछ परिवर्तन होने लगे। उनमें कुछ बातें शामिल की गई और धर्म के कुछ नियमों को बदला गया। इन सबको मिलाकर एक नए नियम बनाए गए जिने संप्रदाय कहा गया। संप्रदाय और धर्म में नियमों का फर्क होता है। संप्रदाय मूल धर्म के कुछ नियमों को बदलकर उसकी जगह नए नियमों का समावेश कर के लोगों के सामने प्रस्तुत किया जाता है। यह कार्य धर्मगुरुओं के द्वारा किया जाता है। जो लोग इन धर्म गुरुओं को मानते हैं, उन में आस्था रखते हैं, वही लोग इन संप्रदायों का प्रचार करते हैं ।जब एक से अधिक लोग किसी अवधारणा को मानते हैं तब उसका प्रभाव दूसरे लोगों पर जल्दी पड़ता है।इस प्रकार एक संप्रदाय का प्रचार और प्रसार होता है। समय के साथ इन संप्रदायों के प्रति लोगों की आस्था बढ़ती रहती है और लोग इसे धर्म समझने लगते हैं। कई पीढ़ियों तक इन संप्रदायों का अनुसरण करने से मानव अपने मूल धर्म को भुलने लगा है। यही वजह है कि आज हम अपने मूल धर्म को भूल गए हैं जिन्हें हम आज धर्म समझ रहे हैं। वह धर्म की एक शाखा है।

Post a Comment

Previous Post Next Post